100+ BEST GULZAR SHAYARI IN HINDI | गुलज़ार शायरी इन हिंदी

GULZAR SHAYARI सरल शब्दों में गुलज़ार साहब की चुनिंदा शायरी है जिन्ह पद कर आप बस वाह वाह करते जाएंगे। उनकी शायरी का जो अंदाज़ है वह बस ज़िन्दगी के कुछ पालो को बड़ी सरलता से अपने शब्दों में संजों देते हैं|
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New GULZAR SHAYARI Status

गुलज़ार शायरी / GULZAR SHAYARIGULZAR SHAYARI सरल शब्दों में गुलज़ार साहब की चुनिंदा शायरी है जिन्ह पद कर आप बस वाह वाह करते जाएंगे। उनकी शायरी का जो अंदाज़ है वह बस ज़िन्दगी के कुछ पालो को बड़ी सरलता से अपने शब्दों में संजों देते हैं| इसी लिए हम यह पोस्ट लाये है जिसमे आपके लिए ढेर सारे GULZAR Shayari, GULZAR Shayari Messages, GULZAR Shayari Status आदि हैं जो आपको बहुत पसंद आने वाले हैं। और आप उन्हें अपने Whatsapp status, Instagram, Facebook पर भी लगा सकते है। अगर आप चाहे तो उन्हें अपने प्यारे दोस्तों को और अपने जानने वालों को भी भेज सकते हैं| यदि आपको यह पोस्ट पसंद आती है तो शेयर जरूर करें।

NEW GULZAR SHAYARI Status in Hindi | गुलज़ार शायरी स्टेटस इन हिंदी

GULZAR-SHAYARI-(101)

जिंदगी ये तेरी खरोंचे है मुझ पर
या फिर तू मुझे तराशने की कोशिश में है…

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 94

दिल के रिश्ते ‍‍‍ हमेशा किस्मत से ही बनते है,
वरना मुलाकात तो रोज हजारों 1000 से होती है

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 88

लोग कहते है की
खुश रहो
मगर मजाल है
की रहने दे

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 79

इतना क्यों सिखाए जा रही हो जिंदगी
हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 73

उधड़ी सी किसी फिल्म का एक सीन थी बारिश,
इस बार मिली मुझसे तो गमगीन थी बारिश।
कुछ लोगों ने रंग लूट लिए शहर में इस के,
जंगल से जो निकली थी वो रंगीन थी बारिश।।

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 66

जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ से लगाई है
मीठा सा गम मीठी सी तन्हाई है।

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 59

खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते हैं

बस एक वहशत-ए-मंज़िल है और कुछ भी नहीं
कि चंद सीढ़ियाँ चढ़ते उतरते रहते हैं

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 52

कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 45

ज़िक्र आए तो मेरे लब से दुआएँ निकलें
शम्अ’ जलती है तो लाज़िम है शुआएँ निकलें
वक़्त की ज़र्ब से कट जाते हैं सब के सीने
चाँद का छलका उतर जाए तो क़ाशें निकलें

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 39

कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 31

साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती
कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 24

फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की
इक ताइर का दिल रखने की कोशिश की
कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में
रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 17

ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
दर्द दिल का लिबास होता है

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 10

हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
फिर न माँगेंगे ज़िंदगी या-रब
ये गुनह हम ने एक बार किया

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 4

तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं,
रात भी आयी, चाँद भी था, मगर नींद नहीं।

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 2

सुनो…
जब कभी देख लुं तुमको
तो मुझे महसूस होता है कि
दुनिया खूबसूरत है।

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 9

आदतन तुम ने कर दिए वा’दे
आदतन हम ने ए’तिबार किया
सब्र हर बार इख़्तियार किया
हम से होता नहीं हज़ार किया

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 16

अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
एक उम्मीद बार बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है

गुलज़ार / GULZAR
GULZAR 22

फूलों की तरह लब खोल कभी
ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी
अल्फ़ाज़ परखता रहता है

GULZAR 30

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता
मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता

GULZAR 37

दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी
कितनी जल्दी मैली करता है पोशाकें रोज़ फ़लक
सुब्ह ही रात उतारी थी और शाम को शब पहनाई भी

GULZAR 43

ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है

GULZAR 50

चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें

GULZAR 58

पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं
शाम से तेज़ हवा चलने के आसार से हैं
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ
और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं

GULZAR 65

दौलत नहीं शोहरत नहीं,न वाह चाहिए
“कैसे हो?” बस दो लफ़्जों की परवाह चाहिए

GULZAR 72

किसने रास्ते मे चांद रखा था,
मुझको ठोकर लगी कैसे।
वक़्त पे पांव कब रखा हमने,
ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे।।
आंख तो भर आयी थी पानी से,
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे।।।

GULZAR 86

तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी,
जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं

GULZAR 93

गए थे सोचकर की बात
बचपन की होगी
मगर दोस्त मुझे अपनी
तरक्की सुनाने लगे

GULZAR 99

बदल दिए है अब
हमने नाराज होने के तरीके,
रूठने के बजाय बस हल्के से
मुस्कुरा देते है।

GULZAR 100

कौन कहता है
हम झूठ नहीं बोलते
एक बार खैरियत
पूछ कर तो देखो

GULZAR 92

गुलाम थे तो
हम सब हिंदुस्तानी थे
आज़ादी ने हमें
हिन्दू मुसलमान बना दिया

GULZAR 84

बहुत अंदर तक जला देती हैं,
वो शिकायते जो बया नहीं होती

GULZAR 78

अच्छी किताबें और अच्छे लोग
तुरंत समझ में नहीं आते हैं,
उन्हें पढना पड़ता हैं

GULZAR 71

सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की,
मुस्कुराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर,
कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया।।

GULZAR 64

आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ

GULZAR 57

ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा

GULZAR 51

रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले

GULZAR 44

मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता
मगर चराग़ की सूरत जला दिया होता
न रौशनी कोई आती मिरे तआ’क़ुब में
जो अपने-आप को मैं ने बुझा दिया होता

GULZAR 36

काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी

GULZAR 29

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में

GULZAR 23

अनमोल नहीं लेकिन फिर भी
पूछ तो मुफ़्त का मोल कभी
खिड़की में कटी हैं सब रातें
कुछ चौरस थीं कुछ गोल कभी

GULZAR 15

बीते रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है

GULZAR 7

शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते

GULZAR 8

इन बर्बाद बस्तियों मे किसे ढूँढते हो दोस्त, उजड़े हुए लोगों के ठिकाने नहीं होते

GULZAR 14

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते

GULZAR 21

तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं

GULZAR 28

सब्र हर बार इख़्तियार किया
हम से होता नहीं हज़ार किया
आदतन तुम ने कर दिए वा’दे
आदतन हम ने ए’तिबार किया

GULZAR 35

रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है

GULZAR 42

आप के पाँव फिर कहाँ पड़ते
हम ज़मीं को अगर ज़मीं कहते
आप ने औरों से कहा सब कुछ
हम से भी कुछ कभी कहीं कहते

GULZAR 49

ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर
सैली सी ख़ामोशी में आवाज़ सुनी फ़रमाइश पर
फ़ासले हैं भी और नहीं भी नापा तौला कुछ भी नहीं
लोग ब-ज़िद रहते हैं फिर भी रिश्तों की पैमाइश पर

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