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New GULZAR SHAYARI Status
गुलज़ार शायरी / GULZAR SHAYARI – GULZAR SHAYARI सरल शब्दों में गुलज़ार साहब की चुनिंदा शायरी है जिन्ह पद कर आप बस वाह वाह करते जाएंगे। उनकी शायरी का जो अंदाज़ है वह बस ज़िन्दगी के कुछ पालो को बड़ी सरलता से अपने शब्दों में संजों देते हैं| इसी लिए हम यह पोस्ट लाये है जिसमे आपके लिए ढेर सारे GULZAR Shayari, GULZAR Shayari Messages, GULZAR Shayari Status आदि हैं जो आपको बहुत पसंद आने वाले हैं। और आप उन्हें अपने Whatsapp status, Instagram, Facebook पर भी लगा सकते है। अगर आप चाहे तो उन्हें अपने प्यारे दोस्तों को और अपने जानने वालों को भी भेज सकते हैं| यदि आपको यह पोस्ट पसंद आती है तो शेयर जरूर करें।
NEW GULZAR SHAYARI Status in Hindi | गुलज़ार शायरी स्टेटस इन हिंदी
जिंदगी ये तेरी खरोंचे है मुझ पर
गुलज़ार / GULZAR
या फिर तू मुझे तराशने की कोशिश में है…
दिल के रिश्ते हमेशा किस्मत से ही बनते है,
गुलज़ार / GULZAR
वरना मुलाकात तो रोज हजारों 1000 से होती है
लोग कहते है की
गुलज़ार / GULZAR
खुश रहो
मगर मजाल है
की रहने दे
इतना क्यों सिखाए जा रही हो जिंदगी
गुलज़ार / GULZAR
हमें कौन से सदिया गुजारनी है यहां
उधड़ी सी किसी फिल्म का एक सीन थी बारिश,
गुलज़ार / GULZAR
इस बार मिली मुझसे तो गमगीन थी बारिश।
कुछ लोगों ने रंग लूट लिए शहर में इस के,
जंगल से जो निकली थी वो रंगीन थी बारिश।।
जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ से लगाई है
गुलज़ार / GULZAR
मीठा सा गम मीठी सी तन्हाई है।
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
हवा चले न चले दिन पलटते रहते हैंबस एक वहशत-ए-मंज़िल है और कुछ भी नहीं
गुलज़ार / GULZAR
कि चंद सीढ़ियाँ चढ़ते उतरते रहते हैं
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
गुलज़ार / GULZAR
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
ज़िक्र आए तो मेरे लब से दुआएँ निकलें
गुलज़ार / GULZAR
शम्अ’ जलती है तो लाज़िम है शुआएँ निकलें
वक़्त की ज़र्ब से कट जाते हैं सब के सीने
चाँद का छलका उतर जाए तो क़ाशें निकलें
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
गुलज़ार / GULZAR
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती
गुलज़ार / GULZAR
कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता
फूल ने टहनी से उड़ने की कोशिश की
गुलज़ार / GULZAR
इक ताइर का दिल रखने की कोशिश की
कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में
रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की
ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
गुलज़ार / GULZAR
दर्द दिल का लिबास होता है
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
गुलज़ार / GULZAR
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
फिर न माँगेंगे ज़िंदगी या-रब
ये गुनह हम ने एक बार किया
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं,
गुलज़ार / GULZAR
रात भी आयी, चाँद भी था, मगर नींद नहीं।
सुनो…
गुलज़ार / GULZAR
जब कभी देख लुं तुमको
तो मुझे महसूस होता है कि
दुनिया खूबसूरत है।
आदतन तुम ने कर दिए वा’दे
गुलज़ार / GULZAR
आदतन हम ने ए’तिबार किया
सब्र हर बार इख़्तियार किया
हम से होता नहीं हज़ार किया
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
गुलज़ार / GULZAR
पीले पत्ते तलाश करती है
एक उम्मीद बार बार आ कर
अपने टुकड़े तलाश करती है
फूलों की तरह लब खोल कभी
ख़ुशबू की ज़बाँ में बोल कभी
अल्फ़ाज़ परखता रहता है
ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता
मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी
कितनी जल्दी मैली करता है पोशाकें रोज़ फ़लक
सुब्ह ही रात उतारी थी और शाम को शब पहनाई भी
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
दिल ने हर चीज़ पराई दी है
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें
पेड़ के पत्तों में हलचल है ख़बर-दार से हैं
शाम से तेज़ हवा चलने के आसार से हैं
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ
और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं
दौलत नहीं शोहरत नहीं,न वाह चाहिए
“कैसे हो?” बस दो लफ़्जों की परवाह चाहिए
किसने रास्ते मे चांद रखा था,
मुझको ठोकर लगी कैसे।
वक़्त पे पांव कब रखा हमने,
ज़िंदगी मुंह के बल गिरी कैसे।।
आंख तो भर आयी थी पानी से,
तेरी तस्वीर जल गयी कैसे।।।
तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी,
जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं
गए थे सोचकर की बात
बचपन की होगी
मगर दोस्त मुझे अपनी
तरक्की सुनाने लगे
बदल दिए है अब
हमने नाराज होने के तरीके,
रूठने के बजाय बस हल्के से
मुस्कुरा देते है।
कौन कहता है
हम झूठ नहीं बोलते
एक बार खैरियत
पूछ कर तो देखो
गुलाम थे तो
हम सब हिंदुस्तानी थे
आज़ादी ने हमें
हिन्दू मुसलमान बना दिया
बहुत अंदर तक जला देती हैं,
वो शिकायते जो बया नहीं होती
अच्छी किताबें और अच्छे लोग
तुरंत समझ में नहीं आते हैं,
उन्हें पढना पड़ता हैं
सामने आए मेरे, देखा मुझे, बात भी की,
मुस्कुराए भी, पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर,
कल का अख़बार था, बस देख लिया, रख भी दिया।।
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
रुके रुके से क़दम रुक के बार बार चले
क़रार दे के तिरे दर से बे-क़रार चले
मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होता
मगर चराग़ की सूरत जला दिया होता
न रौशनी कोई आती मिरे तआ’क़ुब में
जो अपने-आप को मैं ने बुझा दिया होता
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी
तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
अनमोल नहीं लेकिन फिर भी
पूछ तो मुफ़्त का मोल कभी
खिड़की में कटी हैं सब रातें
कुछ चौरस थीं कुछ गोल कभी
बीते रिश्ते तलाश करती है
ख़ुशबू ग़ुंचे तलाश करती है
जब गुज़रती है उस गली से सबा
ख़त के पुर्ज़े तलाश करती है
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते
इन बर्बाद बस्तियों मे किसे ढूँढते हो दोस्त, उजड़े हुए लोगों के ठिकाने नहीं होते
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
सज़ाएँ भेज दो हम ने ख़ताएँ भेजी हैं
सब्र हर बार इख़्तियार किया
हम से होता नहीं हज़ार किया
आदतन तुम ने कर दिए वा’दे
आदतन हम ने ए’तिबार किया
रात को चाँदनी तो ओढ़ा दो
दिन की चादर अभी उतारी है
शाख़ पर कोई क़हक़हा तो खिले
कैसी चुप सी चमन पे तारी है
आप के पाँव फिर कहाँ पड़ते
हम ज़मीं को अगर ज़मीं कहते
आप ने औरों से कहा सब कुछ
हम से भी कुछ कभी कहीं कहते
ओस पड़ी थी रात बहुत और कोहरा था गर्माइश पर
सैली सी ख़ामोशी में आवाज़ सुनी फ़रमाइश पर
फ़ासले हैं भी और नहीं भी नापा तौला कुछ भी नहीं
लोग ब-ज़िद रहते हैं फिर भी रिश्तों की पैमाइश पर