जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
आँखें पहचानती हैं आँखों को
दर्द चेहरा-शनास होता है
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ,
में फिर से निखर जाना चाहता हूँ।
मानता हूँ मुश्किल हैं,
लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।।
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ ।
तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।
एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद
दूसरा सपना देखने के हौसले का नाम जिंदगी हैं
मिलता तो बहुत कुछ है
ज़िन्दगी में
बस हम गिनती उन्ही की
करते है जो हासिल न हो सका
खुद की कीमत गिर जाती है
किसी को कीमती बनाने की
चाह में!
यूं तो ऐ जिंदगी तेरे सफर से
शिकायते बहुत थी
मगर दर्द जब दर्ज करने पहुंचे
तो कतारें बहुत थी
अपने साये से चौंक जाते हैं,
उम्र गुजरी है इस क़दर तनहा.
मैं दिया हूँ
मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं
हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं
कुछ अलग करना हो तो
भीड़ से हट के चलिए,
भीड़ साहस तो देती हैं
मगर पहचान छिन लेती हैं
मैंने मौत को देखा तो नहीं,
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
जीना ही छोड़ देता हैं।।
काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता है
आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
आप हैं इस लिए नहीं कहते
चाँद होता न आसमाँ पे अगर
हम किसे आप सा हसीं कहते
सीने में दिल की आहट जैसे कोई जासूस चले
हर साए का पीछा करना आदत है हरजाई की
आँखों और कानों में कुछ सन्नाटे से भर जाते हैं
क्या तुम ने उड़ती देखी है रेत कभी तन्हाई की
चाँद की नब्ज़ देखना उठ कर
रात की साँस गर्म लगती है
दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में
बुलबुला फिर से चला पानी में ग़ोते खाने
न समझने का उसे वक़्त न समझाने का
मैं ने अल्फ़ाज़ तो बीजों की तरह छाँट दिए
ऐसा मीठा तिरा अंदाज़ था फ़रमाने का
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद
दूसरा सपना देखने के हौसले का नाम जिंदगी हैं
ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का
एक दरवाज़ा सा खुलता है कुतुब-ख़ाने का
एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का
कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
दिल अगर है तो दर्द भी होगा
इस का कोई नहीं है हल शायद
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है
आप के ब’अद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे
कहीं से आता हुआ कोई शहसवार दिखे
ख़फ़ा थी शाख़ से शायद कि जब हवा गुज़री
ज़मीं पे गिरते हुए फूल बे-शुमार दिखे
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो,
कोई पुरानी तमन्ना, पिंघल रही होगी।
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन,
ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन!
मैं वो क्यों बनु जो तुम्हें चाहिए
तुम्हें वो कबूल क्यों नहीं
जो मैं हूं
देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई.
कल का हर वाक़िया था तुम्हारा,
आज की दास्ताँ है हमारी
बहुत मुश्किल से करता हूं
तेरी यादों का कारोबार मुनाफा कम है
पर गुज़ारा हो ही जाता है
वह जो सूरत पर सबकी हंसते है,
उनको तोहफे में एक आईना दीजिए
घर में अपनों से उतना ही रूठो
कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत,
दोनों बरक़रार रह सके
बहुत छाले हैं उसके पैरों में
कमबख्त उसूलों पर चला होगा
देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई.
कल का हर वाक़िया था तुम्हारा,
आज की दास्ताँ है हमारी
मेरी कोई खता तो साबित कर
जो बुरा हूं तो बुरा साबित कर
तुम्हें चाहा है कितना तू क्या जाने
चल मैं बेवफा ही सही
तू अपनी वफ़ा साबित कर।
जब भी आँखों में अश्क भर आए
लोग कुछ डूबते नज़र आए
अपना मेहवर बदल चुकी थी ज़मीं
हम ख़ला से जो लौट कर आए
आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई
मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आए कोई
मिरे मोहल्ले का आसमाँ सूना हो गया है
बुलंदियों पे अब आ के पेचे लड़ाए कोई
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की
क्यूँ इतनी लम्बी होती है चाँदनी रात जुदाई की
नींद में कोई अपने-आप से बातें करता रहता है
काल-कुएँ में गूँजती है आवाज़ किसी सौदाई की
बज़्म-ए-याराँ में रहता हूँ तन्हा
और तंहाई बज़्म लगती है
अपने साए पे पाँव रखता हूँ
छाँव छालों को नर्म लगती है
कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िन्दगी एक नज़्म लगती है
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
छोटा सा साया था, आँखों में आया था,
हमने दो बूंदों से मन भर लिया।
थोड़ा सा रफू करके देखिए ना
फिर से नई सी लगेगी
जिंदगी ही तो है