100+ BEST GULZAR SHAYARI IN HINDI | गुलज़ार शायरी इन हिंदी

GULZAR SHAYARI सरल शब्दों में गुलज़ार साहब की चुनिंदा शायरी है जिन्ह पद कर आप बस वाह वाह करते जाएंगे। उनकी शायरी का जो अंदाज़ है वह बस ज़िन्दगी के कुछ पालो को बड़ी सरलता से अपने शब्दों में संजों देते हैं|
Share your love
5 1 vote
Article Rating

Loading

GULZAR 56

जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है
आँखें पहचानती हैं आँखों को
दर्द चेहरा-शनास होता है

GULZAR 63

तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं
वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं

GULZAR 70

टूट जाना चाहता हूँ, बिखर जाना चाहता हूँ,
में फिर से निखर जाना चाहता हूँ।
मानता हूँ मुश्किल हैं,
लेकिन में गुलज़ार होना चाहता हूँ।।

GULZAR 76

तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ ।
तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।

GULZAR 85

एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद
दूसरा सपना देखने के हौसले का नाम जिंदगी हैं

GULZAR 91

मिलता तो बहुत कुछ है
ज़िन्दगी में
बस हम गिनती उन्ही की
करते है जो हासिल न हो सका

GULZAR 98

खुद की कीमत गिर जाती है
किसी को कीमती बनाने की
चाह में!

GULZAR 97

यूं तो ऐ जिंदगी तेरे सफर से
शिकायते बहुत थी
मगर दर्द जब दर्ज करने पहुंचे
तो कतारें बहुत थी

GULZAR 90

अपने साये से चौंक जाते हैं,
उम्र गुजरी है इस क़दर तनहा.

GULZAR 83

मैं दिया हूँ
मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं
हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं

GULZAR 77

कुछ अलग करना हो तो
भीड़ से हट के चलिए,
भीड़ साहस तो देती हैं
मगर पहचान छिन लेती हैं

GULZAR 69

मैंने मौत को देखा तो नहीं,
पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी।
कमबख्त जो भी उससे मिलता हैं,
जीना ही छोड़ देता हैं।।

GULZAR 62

काई सी जम गई है आँखों पर
सारा मंज़र हरा सा रहता है

GULZAR 55

आप के बाद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

GULZAR 47

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद

GULZAR 41

हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
आप हैं इस लिए नहीं कहते
चाँद होता न आसमाँ पे अगर
हम किसे आप सा हसीं कहते

GULZAR 33

सीने में दिल की आहट जैसे कोई जासूस चले
हर साए का पीछा करना आदत है हरजाई की
आँखों और कानों में कुछ सन्नाटे से भर जाते हैं
क्या तुम ने उड़ती देखी है रेत कभी तन्हाई की

GULZAR 27

चाँद की नब्ज़ देखना उठ कर
रात की साँस गर्म लगती है

GULZAR 20

दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में

GULZAR 13

बुलबुला फिर से चला पानी में ग़ोते खाने
न समझने का उसे वक़्त न समझाने का
मैं ने अल्फ़ाज़ तो बीजों की तरह छाँट दिए
ऐसा मीठा तिरा अंदाज़ था फ़रमाने का

GULZAR 6

हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते

GULZAR 5

एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद
दूसरा सपना देखने के हौसले का नाम जिंदगी हैं

GULZAR 12

ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का
एक दरवाज़ा सा खुलता है कुतुब-ख़ाने का
एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का

GULZAR 19

कोई अटका हुआ है पल शायद
वक़्त में पड़ गया है बल शायद
दिल अगर है तो दर्द भी होगा
इस का कोई नहीं है हल शायद

GULZAR 25

कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की

GULZAR 34

दर्द हल्का है साँस भारी है
जिए जाने की रस्म जारी है
आप के ब’अद हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है

GULZAR 40

हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया

GULZAR 48

कहीं तो गर्द उड़े या कहीं ग़ुबार दिखे
कहीं से आता हुआ कोई शहसवार दिखे
ख़फ़ा थी शाख़ से शायद कि जब हवा गुज़री
ज़मीं पे गिरते हुए फूल बे-शुमार दिखे

GULZAR 53

कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे

GULZAR 61

कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया
जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की

GULZAR 68

पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो,
कोई पुरानी तमन्ना, पिंघल रही होगी।

GULZAR 75

तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन,
ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन!

GULZAR 81

मैं वो क्यों बनु जो तुम्हें चाहिए
तुम्हें वो कबूल क्यों नहीं
जो मैं हूं

GULZAR 89

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई.
कल का हर वाक़िया था तुम्हारा,
आज की दास्ताँ है हमारी

GULZAR 96

बहुत मुश्किल से करता हूं
तेरी यादों का कारोबार मुनाफा कम है
पर गुज़ारा हो ही जाता है

GULZAR 95

वह जो सूरत पर सबकी हंसते है,
उनको तोहफे में एक आईना दीजिए

GULZAR 87

घर में अपनों से उतना ही रूठो
कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत,
दोनों बरक़रार रह सके

GULZAR 82

बहुत छाले हैं उसके पैरों में
कमबख्त उसूलों पर चला होगा

GULZAR 74

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई.
कल का हर वाक़िया था तुम्हारा,
आज की दास्ताँ है हमारी

GULZAR 67

मेरी कोई खता तो साबित कर
जो बुरा हूं तो बुरा साबित कर
तुम्हें चाहा है कितना तू क्या जाने
चल मैं बेवफा ही सही
तू अपनी वफ़ा साबित कर।

GULZAR 60

जब भी आँखों में अश्क भर आए
लोग कुछ डूबते नज़र आए
अपना मेहवर बदल चुकी थी ज़मीं
हम ख़ला से जो लौट कर आए

GULZAR 54

आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

GULZAR 46

दिखाई देते हैं धुँद में जैसे साए कोई
मगर बुलाने से वक़्त लौटे न आए कोई
मिरे मोहल्ले का आसमाँ सूना हो गया है
बुलंदियों पे अब आ के पेचे लड़ाए कोई

GULZAR 38

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है

GULZAR 32

तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की
क्यूँ इतनी लम्बी होती है चाँदनी रात जुदाई की
नींद में कोई अपने-आप से बातें करता रहता है
काल-कुएँ में गूँजती है आवाज़ किसी सौदाई की

GULZAR 26

बज़्म-ए-याराँ में रहता हूँ तन्हा
और तंहाई बज़्म लगती है
अपने साए पे पाँव रखता हूँ
छाँव छालों को नर्म लगती है

GULZAR 18

कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िन्दगी एक नज़्म लगती है

GULZAR 11

कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे

GULZAR 3

छोटा सा साया था, आँखों में आया था,
हमने दो बूंदों से मन भर लिया।

GULZAR 80

थोड़ा सा रफू करके देखिए ना
फिर से नई सी लगेगी
जिंदगी ही तो है

5 1 vote
Article Rating
See also  100+ CAPTIVATING TEHZEEB HAFI SHAYARI IN HINDI | मनोरम तहज़ीब हाफ़ी शायरी इन हिंदी
Share your love
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x