TEHZEEB HAFI SHAYARI | TEHZEEB HAFI SAD SHAYARI | SHAYARI | TEHZEEB HAFI lOVE SHAYARI | TEHZEEB HAFI SHAYARI IN HINDI | TEHZEEB HAFI SHAYARI MESSAGE | TEHZEEB HAFI SHAYARI IMAGES | TEHZEEB HAFI SHAYARI HINDI | TEHZEEB HAFI SHAYARI LYRICS | ATITUDE TEHZEEB HAFI SHAYARI IN HINDI
New TEHZEEB HAFI SHAYARI Status
तहज़ीब हाफ़ी शायरी / TEHZEEB HAFI SHAYARI – TEHZEEB HAFI, 5 दिसंबर 1989 को जन्मे एक शायर हैं जो अपनी अनूठी शैली और मनमोहक प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं। वह डेरा गाजी खान जिले के रेहरा, तहसील तौंसा शरीफ के रहने वाले है। बहावलपुर विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए करने से पहले उन्होंने मेहरान विश्वविद्यालय से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।
तहज़ीब हाफ़ी एक अलग अंदाज़ है अपनी शायरी पेश करने का ईसी लिए हम यह पोस्ट लाये है जिसमे आपके लिए ढेर सारे TEHZEEB HAFI Shayari, TEHZEEB HAFI Shayari Messages, TEHZEEB HAFI Shayari Status आदि हैं जो आपको बहुत पसंद आने वाले हैं। और आप उन्हें अपने Whatsapp status, Instagram, Facebook पर भी लगा सकते है। अगर आप चाहे तो उन्हें अपने प्यारे दोस्तों को और अपने जानने वालों को भी भेज सकते हैं| यदि आपको यह पोस्ट पसंद आती है तो शेयर जरूर करें।
TEHZEEB HAFI SHAYARI Status | तहज़ीब हाफ़ी शायरी स्टेटस इन हिंदी
जब किसी एक को रिहा किया जाए
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
सब असीरों से मशवरा किया जाए
रह लिया जाए अपने होने पर
अपने मरने पे हौसला किया जाए
रुक गया है वो या चल रहा है
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
हमको सब कुछ पता चल रहा है।
उसने शादी भी की है किसी से,
और गाँव में क्या चल रहा है ?
तेरे जिस्म से मेरी गुफ़्तगू रही रात भर
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
कहीं मैं नशे में ज़्यादा बक तो नहीं गया
ये जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
मेरे यार कहीं तू मुझसे थक तो नहीं गया
तिज़ोरियों पे नज़र और लोग रखते हैं
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
मैं आसमान चुरा लूंगा जब भी मौका लगा
ये क़ायनात बनाई है एक ताजिर नें
यहां पे दिल नहीं लगना यहां पे पैसा लगा
मेरी आँख से तेरा गम छलक तो नही गया
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
तुझे ढूंढ कर मैं भटक तो नहीं गया ….!!
ये जो इतने प्यार से देखता है आजकल
मेरे दोस्त तू मुझसे थक तो नहीं गया.!!
हमें तो नींद भी आती है तो आधी आती है
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
वो कैसे हैं जिन्हें ख़्वाब मुक़म्मल आते हैं
कितने फूल खिले हैं हम को क्या लेना
हम तो कांटे चुनने के लिए जंगल आते हैं
जो मेरे साथ मोहब्बत में हुई
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
आदमी एक दफ़ा सोचेगा
रात इस डर में गुज़ारी हमने
कोई देखेगा तो क्या सोचेगा
ये कौन राह में बैठे है मुस्कुराते हैं
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
मुसाफिरों को गलत रास्ता बताते हैं
तेरे लगाये हुए जख्म क्यूँ नही भरते
मेरे लगाये हुए पेड़ सूख जाते हैं..!!
तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है,
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो !
तो फिर ये बताओ के तुम,
उसकी आँखों के बारे में क्या जानते हो ?
ये जियोग्राफ़ियां, फ़लसफ़ा, साईकोलोजी,
साइंस रियाज़ी वगरैह …
ये सब जानना भी अहम है मगर,
उसके घर का पता जानते हो ?
बस एक दुःख जो मेरे दिल से उम्र भर न जायेगा
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
उसको किसी के साथ देख कर मैं मर नहीं गया
मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बांटा है
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
बचपन से रखता आया हूं तेरा हिस्सा एक तरफ़
एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता-रफ़्ता एक तरफ़
तुझे भी साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाजा बना लेता
मैं अपने ख़्वाब पूरे करके खुश हूं मगर ये पछतावा नहीं जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था तुझे अपना बना लेता
मैं उसे कब का भूल-भाल चुका
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
सभी मौसम हैं दस्तरस में तिरी
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
तू ने चाहा तो हम हरे रहेंगे
तू इधर देख मुझ से बातें कर
यार चश्मे तो फूटते रहेंगे
सो रहेंगे कि जागते रहेंगे
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
हम तिरे ख़्वाब देखते रहेंगे
बर्फ़ पिघलेगी और पहाड़ों में
सालहा-साल रास्ते रहेंगे
दिल मोहब्बत में मुब्तला हो जाए
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
जो अभी तक न हो सका हो जाए
दिल भी कैसा दरख़्त है ‘हाफ़ी’
जो तिरी याद से हरा हो जाए
चीख़ते हैं दर-ओ-दीवार नहीं होता मैं
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
आँख खुलने पे भी बेदार नहीं होता मैं
ख़्वाब करना हो, सफ़र करना हो या रोना हो
मुझ में ख़ूबी है कि बेज़ार नहीं होता मैं
घर में भी दिल नहीं लग रहा काम पर भी नहीं जा रहा
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
जाने क्या खौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा
रात के तीन बजने को है यार ये कैसा महबूब है
जो गले भी नहीं लग रहा है और घर भी नहीं जा रहा
ये दुख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है
तेरे बिछड़ने पे लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें
ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है
सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं,
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
पेंड़ का रूप धार लूंगा मैं
तू अगर निशाने पर आ भी जाए तो,
कौन सा तीर मार लूँगा मैं
और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गई
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गई
तेरा चेहरा तेरे होठ और पलकें देखें
तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
दिल पर आंखें रक्खे तेरी सांसे देखें
थोड़ी देर में जंगल छोड़ के जाना है
बरगद देखें या बरगद की शाखें देखें
ये सच है के मोहब्बत नहीं की
तहज़ीब हाफ़ी
दोस्त बस मेरी तबीयत नहीं की
इसलिए गाँव मे सैलाब आया
हमनें दरियाओं की इज्ज़त नहीं की
अश्क ज़ाया हो रहे थे….. देख कर रोता न था
तहज़ीब हाफ़ी
जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था
सिर्फ़ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिये…!!
मैं तो वो हूं जो किसी की मौत पर रोता न था
रात को दीप की लौ कम नहीं रखी जाती
तहज़ीब हाफ़ी
धुंध में रौशनी…. मद्धम नहीं रखी जाती
कैसे दरिया की हिफ़ाज़त तेरे ज़िम्मे ठहराऊँ
तुझसे एक आंख अगर नम नहीं रखी जाती
अब ज़रूरी तो नहीं है कि वो सब कुछ कह दे
तहज़ीब हाफ़ी
दिल मे जो कुछ भी हो आँखों से नज़र आता है
मैं उससे सिर्फ ये कहता हूं कि घर जाना है
और वो मारने मरने पे उतर आता है
मैं दिल पे हाथ रख के तुझको शहर भेज दूँ मगर
तहज़ीब हाफ़ी
तुझे भी उन हवाओं ने अगर ख़राब कर दिया
मैं क़ाफ़िले के साथ हूँ मगर मुझे ये खौफ़ है
अगर किसी ने मेरा हमसफ़र ख़राब कर दिया
तपते सहराओं में सब के सर पर आंचल हो गया
तहज़ीब हाफ़ी
उसने जुल्फ़ें खोल दी और मसअला हल हो गया
आंख जैसे तुझको रुखसत कर के पत्थर हो गई
हाथ तेरी छतरियां थामे हुए शल्ल हो गया
बादलों में उड़ रहा था मैं वो जब तक साथ था
एक दिन वो मुझसे बिछड़ा और मैं पैदल हो गया
नहीं था अपना मगर अपना-अपना लगा
तहज़ीब हाफ़ी
किसी से मिलके बहोत देर बाद अच्छा लगा
तुम्हें लगा था कि मैं मर जाऊंगा तुम्हारे बग़ैर
बताओ फिर तुम्हें मेरा मज़ाक कैसा लगा
मुझको दरवाज़े पर ही रोक लिया जाता है
तहज़ीब हाफ़ी
मेरे आने से भला आपका क्या जाता है
तू अगर जाने लगा है तो पलट कर मत देख
मौत लिखकर तो कलम तोड़ दिया जाता है
ख़्वाबों को आंखों से मिन्हां करती है
तहज़ीब हाफ़ी
नींद हमेशा मुझसे धोख़ा करती है
सच पूछो तो ‘हाफ़ी’ ये तन्हाई भी
जीने का सामान मुहैया करती है
मैं चाहता हूँ परिंदे रिहा किये जाएँ
तहज़ीब हाफ़ी
मैं चाहता हूँ तेरे होंठ से हँसी निकले
मैं चाहता हूँ तेरे हिज़्र में अजीब हो कुछ
मैं चाहता हूँ चराग़ों से तीरग़ी निकले
कौन है जो इस दिल में ख़ामोशी से उतरेगा
तहज़ीब हाफ़ी
देखो इस आवाज़ पे कितने पागल आते हैं
पहले पहल मेरे दिल को बस वो एक ही अच्छा लगता था
अब तो गांव में हर नेटवर्क के सिग्नल आते हैं
टूट भी जाऊं तो तिरा क्या है
तहज़ीब हाफ़ी
रेत से पूछ आईना क्या है
फिर मेरे सामने उसी का ज़िक्र
आपके साथ मसअला क्या है
मुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है
तहज़ीब हाफ़ी
अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है
किस तरह मुझ से मुहब्बत में कोई जीत गया
ये न कह देना के बिस्तर में बड़ा अच्छा है
मैं ख़ला हूं ख़लाओं का ने’मल बदल खुद ख़ला है तुम्हें क्या पता
तहज़ीब हाफ़ी
मैं तुम्हारी तरह कोई खाली जगह तो नहीं हूं कि भर जाऊंगा
चाहता हूं तुम्हें और बहोत चाहता हूं तुम्हें खुद भी मालूम है
हां अगर मुझसे पूछा किसी ने तो मैं सीधा मुंह पे मुक़र जाऊंगा
मैंने कब कहा..
तहज़ीब हाफ़ी
वो मेरे हक़ में फ़ैसला करे।
अगर वो मुझसे खुश नहीं है तो,
मुझे जुदा करे।
मैं उसके साथ, जिस तरह गुजारता हूं ज़िंदगी,
उसे चाहिए कि,
मेरा शुक्रिया अदा करे।।
उसके हाथों में जो खंज़र है वो ज़्यादा तेज़ है
तहज़ीब हाफ़ी
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है
आज उसके गाल चूमे हैं तो अंदाज़ा हुआ
चाय अच्छी है…… थोड़ा सा मीठा तेज़ है
हम उसका ग़म भला किस्मत पे कैसे टाल सकते हैं
तहज़ीब हाफ़ी
हमारे हाथ में टूटा है वो… गिरकर नहीं टूटा
तिलिस्म ए यार में जब भी कमी आई नमीं आई
उन आंखों में जिन्हें लगता था जादूग़र नहीं टूटा
तलिस्म ए यार ये पहलू निकाल लेता है
तहज़ीब हाफ़ी
कि पत्थरों से भी खुशबू निकाल लेता है
है बेलिहाज़ कुछ ऐसा कि आंख लगते ही
वो सर के नीचे से बाजू निकाल लेता है
क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ
तहज़ीब हाफ़ी
जब वो इन हाथों से पहली मर्तबा रौशन हुआ
वो मेरे सीने से लग कर जिसको रोई कौन था
किसके बुझनें पर मैं उसकी जगह रौशन हुआ
तेरी आंखों ने मुझसे मेरी खुद्दारी छीनी वरना
तहज़ीब हाफ़ी
पांव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़
मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने दरिया एक तरफ़ रक्खा और सहरा एक तरफ़
मैं ज़िन्दगी में आज पहली बार घर नहीं गया
तहज़ीब हाफ़ी
मगर तमाम रात दिल से माँ का डर नहीं गया
जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो
तहज़ीब हाफ़ी
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो
अब इतनी देर भी ना लगा, ये ना हो कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो
अजीब दुख है..
तहज़ीब हाफ़ी
हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैं
अजीब दुख है..
हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है
मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूठ सुनने को फ़ोन करता,
सुनो यहाँ कोई मसअला है. तुम्हारी आवाज़ कट रही है
मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या-क्या याद है
तहज़ीब हाफ़ी
वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है
मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो ना हो पाया कभी
लेकिन उसको तर्जुमें के सात कलमा याद है
उसके चाहने वालों का आज उसकी गली में धरना है
तहज़ीब हाफ़ी
यहीं पर रुक जाओ तो ठीक है आगे जाकर मरना है
रूह किसी को सौंप आए हो तो ये ज़िस्म भी ले जाओ
वैसे भी मुझे इस खाली बोतल का क्या करना है
ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके
तहज़ीब हाफ़ी
वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके
मेरा दिल भी जैसे रेगिस्तान है
सब हुकूमत करके बाहर जा चुके
किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
तहज़ीब हाफ़ी
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खुलना
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है
बड़ा पुर-फ़रेब है शहद ओ शीर का ज़ायका
तहज़ीब हाफ़ी
मगर इन लबों से तेरा नमक तो नहीं गया
ये जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
मेरे यार कहीं तू मुझसे थक तो नहीं गया
मैंने कब कहा..
तहज़ीब हाफ़ी
वो मेरे हक़ में फ़ैसला करे।
अगर वो मुझसे खुश नहीं है तो,
मुझे जुदा करे।
मैं उसके साथ, जिस तरह गुजारता हूं ज़िंदगी,
उसे चाहिए कि,
मेरा शुक्रिया अदा करे।।
और ही दुनिया में मिली थी तू मुझसे
तहज़ीब हाफ़ी
तू किसी और ही मौसम की महक लाई थी
डर रहा था कि कहीं जख़्म ना भर जाएं मेरे
और तू मुट्ठियाँ भर भर के नमक लाई थी
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
तहज़ीब हाफ़ी
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया
रुक गया है वो या चल रहा है
तहज़ीब हाफ़ी
हमको सब कुछ पता चल रहा है।
उसने शादी भी की है किसी से,
और गाँव में क्या चल रहा है ?
उसी जगह पर जहां कई रास्ते मिलेंगे
तहज़ीब हाफ़ी
पलटके आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो
हम जैसे बुज़दिल की पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे
किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
तहज़ीब हाफ़ी
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खुलना
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है
तेरी आंखों ने मुझसे मेरी खुद्दारी छीनी वरना
तहज़ीब हाफ़ी
पांव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़
मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने दरिया एक तरफ़ रक्खा और सहरा एक तरफ़
नहीं आता किसी पर दिल हमारा
तहज़ीब हाफ़ी
वही कश्ती वही साहिल हमारा
तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम
तेरी गलियां है मुस्तकबिल हमारा
मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बांटा है
तहज़ीब हाफ़ी
बचपन से रखता आया हूं तेरा हिस्सा एक तरफ़
एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता-रफ़्ता एक तरफ़
नहीं था अपना मगर अपना-अपना लगा
तहज़ीब हाफ़ी
किसी से मिलके बहोत देर बाद अच्छा लगा
तुम्हें लगा था कि मैं मर जाऊंगा तुम्हारे बग़ैर
बताओ फिर तुम्हें मेरा मज़ाक कैसा लगा
बना चुका हूँ मोहब्बतों के दर्द की दवा
तहज़ीब हाफ़ी
अगर किसी को चाहिए तो मुझसे राब्ता करे
रात को दीप की लौ कम नहीं रखी जाती
तहज़ीब हाफ़ी
धुंध में रौशनी…. मद्धम नहीं रखी जाती
कैसे दरिया की हिफ़ाज़त तेरे ज़िम्मे ठहराऊँ
तुझसे एक आंख अगर नम नहीं रखी जाती
जंग पर निकलता हूँ, ढाल भूल जाता हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
मैं अज़ब शिकारी हूँ, जाल भूल जाता हूँ
वस्ल में भी रहती है, भूलने की बीमारी
होठ चूम आता हूँ, गाल भूल जाता हूँ
ये कौन राह में बैठे है मुस्कुराते हैं
तहज़ीब हाफ़ी
मुसाफिरों को गलत रास्ता बताते हैं
तेरे लगाये हुए जख्म क्यूँ नही भरते
मेरे लगाये हुए पेड़ सूख जाते हैं..!!
अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
तहज़ीब हाफ़ी
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया
तुमने तो बस दिया जलाना होता है
तहज़ीब हाफ़ी
हमने कितनी दूर से आना होता है
आँसू और दुआ में कोई फ़र्क़ नहीं
रो देना भी हाथ उठाना होता है
मेरे साथ परिंदों कुछ इंसान भी हैं
मैंने अपने घर भी जाना होता है
तुम अब उन रास्तों पर हो तहज़ीब जहां
मुड़ के तकने पर जुर्माना होता है
बैठा रहता था साहिल पे सारा दिन
तहज़ीब हाफ़ी
दरिया मुझ से जान छुड़ाया करता था
थक जाता था बादल साया करते करते
और फिर मैं बादल पे साया करता था
मेरे बस में नहीं वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तहज़ीब हाफ़ी
तेरे हिस्से में आए बुरे दिन कोई दूसरा काटता
लारियों से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज़ में
मैं इशारा नहीं काट सकता तेरी बात क्या काटता
मैं राह से भटक गया तो क्या हुआ
तहज़ीब हाफ़ी
चराग़ मेरे हाथ में तो था नहीं
मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर
मैं मर चुका हूँ और मुझे पता नहीं
मेरी आँख से तेरा गम छलक तो नही गया
तहज़ीब हाफ़ी
तुझे ढूंढ कर मैं भटक तो नहीं गया ….!!
ये जो इतने प्यार से देखता है आजकल
मेरे दोस्त तू मुझसे थक तो नहीं गया.!!
अब मज़ीद उससे ये रिश्ता नहीं रख़ा जाता
तहज़ीब हाफ़ी
जिससे इक शख़्स का पर्दा नहीं रख़ा जाता
एक तो बस में नहीं तुझसे मोहब्बत न रख़ूं
और फिर हाथ भी हल्का नहीं रख़ा जाता
ज़ख़्मों ने मुझ में दरवाज़े खोले हैं
तहज़ीब हाफ़ी
मैं ने वक़्त से पहले टाँके खोले हैं
बाहर आने की भी सकत नहीं हम में
तू ने किस मौसम में पिंजरे खोले हैं
मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा
तहज़ीब हाफ़ी
मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है
बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था
तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है
सो रहेंगे कि जागते रहेंगे
तहज़ीब हाफ़ी
हम तिरे ख़्वाब देखते रहेंगे
लौटना कब है तू ने पर तुझको
आदतन ही पुकारते रहेंगे
मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है, मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा
तहज़ीब हाफ़ी
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा
मैं घर में बैठ कर पढ़ता रहा सफर की दुआ
तहज़ीब हाफ़ी
वो भी उनके लिए जो मुझ से दूर जा रहे थे
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
तहज़ीब हाफ़ी
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया
अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा
सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है
तहज़ीब हाफ़ी
हिजरत करूँगा गाँव से गाँव में रेत है
मुद्दत से मेरी आँख में इक ख़्वाब है मुक़ीम
पानी में पेड़ पेड़ की छाँव में रेत है
नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए
तहज़ीब हाफ़ी
ख़्वाब ऐसा कि मुँह खुला रह जाए
इतनी गिर्हें लगी हैं इस दिल पर
कोई खोले तो खोलता रह जाए
क्या ग़लत-फ़हमी में रह जाने का
तहज़ीब हाफ़ी
सदमा कुछ नहीं??
वो मुझे समझा तो सकता था कि
ऐसा कुछ नहीं..
इश्क़ से बच कर भी
बंदा कुछ नहीं होता मगर,
ये भी सच है इश्क़ में..
बंदे का बचता कुछ नहीं !!
जाने वाले से राब्ता रह जाए
तहज़ीब हाफ़ी
घर की दीवार पर दिया रह जाए
इक नज़र जो भी देख ले तुझ को
वो तिरे ख़्वाब देखता रह जाए
रात बहुत है तुम चाहो तो सो जाओ
तहज़ीब हाफ़ी
मेरा क्या है मैं दिन में भी सो लूँगा
तुम को दिल की बात बतानी है लेकिन
आँखें बंद करो तो मुट्ठी खोलूँगा
मैं ने तुम को अंदर आने का कहा
तहज़ीब हाफ़ी
तुम तो मेरे दिल के अंदर आ गए
एक ही औरत को दुनिया मानकर
इतना घुमा हूँ कि चक्कर आ गए
इम्तिहान-ए-इश्क़ मुश्किल था मगर
नक़्ल कर के अच्छे नंबर आ गए
तेरे कुछ आशिक़ तो गंगाराम हैं
और जो बाक़ी थे बिस्तर आ गए
ख़ुद पे जब दश्त की वहशत को मुसल्लत करूँगा
तहज़ीब हाफ़ी
इस क़दर ख़ाक उड़ाऊँगा क़यामत करूँगा
अब तिरे राज़ सँभाले नहीं जाते मुझ से
मैं किसी रोज़ अमानत में ख़यानत करूँगा
इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ
तहज़ीब हाफ़ी
ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ