100+ CAPTIVATING TEHZEEB HAFI SHAYARI IN HINDI | मनोरम तहज़ीब हाफ़ी शायरी इन हिंदी

तहज़ीब हाफ़ी शायरी / TEHZEEB HAFI SHAYARI - TEHZEEB HAFI SHAYARI,  5 दिसंबर 1989 को जन्मे एक शायर हैं जो अपनी अनूठी शैली और मनमोहक प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं। वह डेरा गाजी खान जिले के रेहरा, तहसील तौंसा शरीफ के रहने वाले है। बहावलपुर विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए करने से पहले उन्होंने मेहरान विश्वविद्यालय से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।
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New TEHZEEB HAFI SHAYARI Status

तहज़ीब हाफ़ी शायरी / TEHZEEB HAFI SHAYARITEHZEEB HAFI,  5 दिसंबर 1989 को जन्मे एक शायर हैं जो अपनी अनूठी शैली और मनमोहक प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं। वह डेरा गाजी खान जिले के रेहरा, तहसील तौंसा शरीफ के रहने वाले है। बहावलपुर विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए करने से पहले उन्होंने मेहरान विश्वविद्यालय से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।

तहज़ीब हाफ़ी एक अलग अंदाज़ है अपनी शायरी पेश करने का ईसी लिए हम यह पोस्ट लाये है जिसमे आपके लिए ढेर सारे TEHZEEB HAFI Shayari, TEHZEEB HAFI Shayari Messages, TEHZEEB HAFI Shayari Status आदि हैं जो आपको बहुत पसंद आने वाले हैं। और आप उन्हें अपने Whatsapp status, Instagram, Facebook पर भी लगा सकते है। अगर आप चाहे तो उन्हें अपने प्यारे दोस्तों को और अपने जानने वालों को भी भेज सकते हैं| यदि आपको यह पोस्ट पसंद आती है तो शेयर जरूर करें।

TEHZEEB HAFI SHAYARI Status | तहज़ीब हाफ़ी शायरी स्टेटस इन हिंदी

TEHZEEB-HAFI-SHAYARI-(50)

जब किसी एक को रिहा किया जाए
सब असीरों से मशवरा किया जाए
रह लिया जाए अपने होने पर
अपने मरने पे हौसला किया जाए

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(42)

रुक गया है वो या चल रहा है
हमको सब कुछ पता चल रहा है।
उसने शादी भी की है किसी से,
और गाँव में क्या चल रहा है ?

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(34)

तेरे जिस्म से मेरी गुफ़्तगू रही रात भर
कहीं मैं नशे में ज़्यादा बक तो नहीं गया
ये जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
मेरे यार कहीं तू मुझसे थक तो नहीं गया

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(26)

तिज़ोरियों  पे  नज़र  और  लोग  रखते  हैं
मैं आसमान चुरा लूंगा जब भी मौका लगा
ये क़ायनात बनाई है एक ताजिर नें
यहां पे दिल नहीं लगना यहां पे पैसा लगा

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(18)

मेरी आँख से तेरा गम छलक तो नही गया
तुझे ढूंढ कर मैं भटक तो नहीं गया ….!!
ये जो इतने प्यार से देखता है आजकल
मेरे दोस्त तू मुझसे थक तो नहीं गया.!!

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(10)

हमें तो नींद भी आती है तो आधी आती है
वो कैसे हैं जिन्हें ख़्वाब मुक़म्मल आते हैं
कितने फूल खिले हैं हम को क्या लेना
हम तो कांटे चुनने के लिए जंगल आते हैं

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(2)

जो मेरे साथ मोहब्बत में हुई
आदमी एक दफ़ा सोचेगा
रात इस डर में गुज़ारी हमने
कोई देखेगा तो क्या सोचेगा

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(1)

ये कौन राह में बैठे है मुस्कुराते हैं
मुसाफिरों को गलत रास्ता बताते हैं
तेरे लगाये हुए जख्म क्यूँ नही भरते
मेरे लगाये हुए पेड़ सूख जाते हैं..!!

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(9)

तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है,
मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो !
तो फिर ये बताओ के तुम,
उसकी आँखों के बारे में क्या जानते हो ?
ये जियोग्राफ़ियां, फ़लसफ़ा, साईकोलोजी,
साइंस रियाज़ी वगरैह …
ये सब जानना भी अहम है मगर,
उसके घर का पता जानते हो ?

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(17)

बस एक दुःख जो मेरे दिल से उम्र भर न जायेगा
उसको किसी के साथ देख कर मैं मर नहीं गया

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(25)

मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बांटा है
बचपन से रखता आया हूं तेरा हिस्सा एक तरफ़
एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता-रफ़्ता एक तरफ़

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(33)

तुझे भी साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता
अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाजा बना लेता
मैं अपने ख़्वाब पूरे करके खुश हूं मगर ये पछतावा नहीं जाता
के मुस्तक़बिल बनाने से तो अच्छा था तुझे अपना बना लेता

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(41)

मैं उसे कब का भूल-भाल चुका
ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(49)

सभी मौसम हैं दस्तरस में तिरी
तू ने चाहा तो हम हरे रहेंगे
तू इधर देख मुझ से बातें कर
यार चश्मे तो फूटते रहेंगे

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(48)

सो रहेंगे कि जागते रहेंगे
हम तिरे ख़्वाब देखते रहेंगे
बर्फ़ पिघलेगी और पहाड़ों में
सालहा-साल रास्ते रहेंगे

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(40)

दिल मोहब्बत में मुब्तला हो जाए
जो अभी तक न हो सका हो जाए
दिल भी कैसा दरख़्त है ‘हाफ़ी’
जो तिरी याद से हरा हो जाए

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(32)

चीख़ते हैं दर-ओ-दीवार नहीं होता मैं
आँख खुलने पे भी बेदार नहीं होता मैं
ख़्वाब करना हो, सफ़र करना हो या रोना हो
मुझ में ख़ूबी है कि बेज़ार नहीं होता मैं

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(24)

घर में भी दिल नहीं लग रहा काम पर भी नहीं जा रहा
जाने क्या खौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा
रात के तीन बजने को है यार ये कैसा महबूब है
जो गले भी नहीं लग रहा है और घर भी नहीं जा रहा

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(16)

ये दुख अलग है कि उससे मैं दूर हो रहा हूँ
ये ग़म जुदा है वो ख़ुद मुझे दूर कर रहा है
तेरे बिछड़ने पे लिख रहा हूँ मैं ताज़ा ग़ज़लें
ये तेरा ग़म है जो मुझको मशहूर कर रहा है

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(8)

सब परिंदों से प्यार लूँगा मैं,
पेंड़ का रूप धार लूंगा मैं
तू अगर निशाने पर आ भी जाए तो,
कौन सा तीर मार लूँगा मैं

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(7)

और फिर एक दिन बैठे बैठे मुझे अपनी दुनिया बुरी लग गई
जिसको आबाद करते हुए मेरे मां-बाप की ज़िंदगी लग गई

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(15)

तेरा चेहरा तेरे होठ और पलकें देखें
दिल पर आंखें रक्खे तेरी सांसे देखें
थोड़ी देर में जंगल छोड़ के जाना है
बरगद देखें या बरगद की शाखें देखें

तहज़ीब हाफ़ी / TEHZEEB HAFI
TEHZEEB-SHAYARI-(23)

ये सच है के मोहब्बत नहीं की
दोस्त बस मेरी तबीयत नहीं की
इसलिए गाँव मे सैलाब आया
हमनें दरियाओं की इज्ज़त नहीं की

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(31)

अश्क ज़ाया हो रहे थे….. देख कर रोता न था
जिस जगह बनता था रोना मैं उधर रोता न था
सिर्फ़ तेरी चुप ने मेरे गाल गीले कर दिये…!!
मैं तो वो हूं जो किसी की मौत पर रोता न था

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(39)

रात को दीप की लौ कम नहीं रखी जाती
धुंध में रौशनी…. मद्धम नहीं रखी जाती
कैसे दरिया की हिफ़ाज़त तेरे ज़िम्मे ठहराऊँ
तुझसे एक आंख अगर नम नहीं रखी जाती

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(47)

अब ज़रूरी तो नहीं है कि वो सब कुछ कह दे
दिल मे जो कुछ भी हो आँखों से नज़र आता है
मैं उससे सिर्फ ये कहता हूं कि घर जाना है
और वो मारने मरने पे उतर आता है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(46)

मैं दिल पे हाथ रख के तुझको शहर भेज दूँ मगर
तुझे भी उन हवाओं ने अगर ख़राब कर दिया
मैं क़ाफ़िले के साथ हूँ मगर मुझे ये खौफ़ है
अगर किसी ने मेरा हमसफ़र ख़राब कर दिया

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(38)

तपते सहराओं में सब के सर पर आंचल हो गया
उसने जुल्फ़ें खोल दी और मसअला हल हो गया
आंख जैसे तुझको रुखसत कर के पत्थर हो गई
हाथ तेरी छतरियां थामे हुए शल्ल हो गया
बादलों में उड़ रहा था मैं वो जब तक साथ था
एक दिन वो मुझसे बिछड़ा और मैं पैदल हो गया

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(30)

नहीं था अपना मगर अपना-अपना लगा
किसी से मिलके बहोत देर बाद अच्छा लगा
तुम्हें लगा था कि मैं मर जाऊंगा तुम्हारे बग़ैर
बताओ फिर तुम्हें मेरा मज़ाक कैसा लगा

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(22)

मुझको दरवाज़े पर ही रोक लिया जाता है
मेरे आने से भला आपका क्या जाता है
तू अगर जाने लगा है तो पलट कर मत देख
मौत लिखकर तो कलम तोड़ दिया जाता है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(14)

ख़्वाबों को आंखों से मिन्हां करती है
नींद हमेशा मुझसे धोख़ा करती है
सच पूछो तो ‘हाफ़ी’ ये तन्हाई भी
जीने का सामान मुहैया करती है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(6)

मैं चाहता हूँ परिंदे रिहा किये जाएँ
मैं चाहता हूँ तेरे होंठ से हँसी निकले
मैं चाहता हूँ तेरे हिज़्र में अजीब हो कुछ
मैं चाहता हूँ चराग़ों से तीरग़ी निकले

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(5)

कौन है जो इस दिल में ख़ामोशी से उतरेगा
देखो इस आवाज़ पे कितने पागल आते हैं
पहले पहल मेरे दिल को बस वो एक ही अच्छा लगता था
अब तो गांव में हर नेटवर्क के सिग्नल आते हैं

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(13)

टूट भी जाऊं तो तिरा क्या है
रेत से पूछ आईना क्या है
फिर मेरे सामने उसी का ज़िक्र
आपके साथ मसअला क्या है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(21)

मुझ से मत पूछो के उस शख़्स में क्या अच्छा है
अच्छे अच्छों से मुझे मेरा बुरा अच्छा है
किस तरह मुझ से मुहब्बत में कोई जीत गया
ये न कह देना के बिस्तर में बड़ा अच्छा है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(29)

मैं ख़ला हूं ख़लाओं का ने’मल बदल खुद ख़ला है तुम्हें क्या पता
मैं तुम्हारी तरह कोई खाली जगह तो नहीं हूं कि भर जाऊंगा
चाहता हूं तुम्हें और बहोत चाहता हूं तुम्हें खुद भी मालूम है
हां अगर मुझसे पूछा किसी ने तो मैं सीधा मुंह पे मुक़र जाऊंगा

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(37)

मैंने कब कहा..
वो मेरे हक़ में फ़ैसला करे।
अगर वो मुझसे खुश नहीं है तो,
मुझे जुदा करे।
मैं उसके साथ, जिस तरह गुजारता हूं ज़िंदगी,
उसे चाहिए कि,
मेरा शुक्रिया अदा करे।।

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(45)

उसके हाथों में जो खंज़र है वो ज़्यादा तेज़ है
और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज़ है
आज उसके गाल चूमे हैं तो अंदाज़ा हुआ
चाय अच्छी है…… थोड़ा सा मीठा तेज़ है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(44)

हम उसका ग़म भला किस्मत पे कैसे टाल सकते हैं
हमारे हाथ में टूटा है वो… गिरकर नहीं टूटा
तिलिस्म ए यार में जब भी कमी आई नमीं आई
उन आंखों में जिन्हें लगता था जादूग़र नहीं टूटा

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(28)

तलिस्म ए यार ये पहलू निकाल लेता है
कि पत्थरों से भी खुशबू निकाल लेता है
है बेलिहाज़ कुछ ऐसा कि आंख लगते ही
वो सर के नीचे से बाजू निकाल लेता है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(36)

क्या ख़बर उस रौशनी में और क्या रौशन हुआ
जब वो इन हाथों से पहली मर्तबा रौशन हुआ
वो मेरे सीने से लग कर जिसको रोई कौन था
किसके बुझनें पर मैं उसकी जगह रौशन हुआ

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(20)

तेरी आंखों ने मुझसे मेरी खुद्दारी छीनी वरना
पांव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़
मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने दरिया एक तरफ़ रक्खा और सहरा एक तरफ़

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(12)

मैं ज़िन्दगी में आज पहली बार घर नहीं गया
मगर तमाम रात दिल से माँ का डर नहीं गया

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(4)

जो तेरे साथ रहते हुए सोगवार हो
लानत हो ऐसे शख़्स पे और बेशुमार हो
अब इतनी देर भी ना लगा, ये ना हो कहीं
तू आ चुका हो और तेरा इंतज़ार हो

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(3)

अजीब दुख है..
हम उस के हो कर भी उस को छूने से डर रहे हैं
अजीब दुख है..
हमारे हिस्से की आग औरों में बट रही है
मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूठ सुनने को फ़ोन करता,
सुनो यहाँ कोई मसअला है. तुम्हारी आवाज़ कट रही है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(11)

मुझसे मत पूछो कि मुझको और क्या-क्या याद है
वो मेरे नज़दीक आया था बस इतना याद है
मुझसे वो काफ़िर मुसलमाँ तो ना हो पाया कभी
लेकिन उसको तर्जुमें के सात कलमा याद है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(19)

उसके चाहने वालों का आज उसकी गली में धरना है
यहीं पर रुक जाओ तो ठीक है आगे जाकर मरना है
रूह किसी को सौंप आए हो तो ये ज़िस्म भी ले जाओ
वैसे भी मुझे इस खाली बोतल  का क्या करना है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(27)

ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके
वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके
मेरा दिल भी जैसे रेगिस्तान है
सब हुकूमत करके बाहर जा चुके

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(35)

किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खुलना
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है

तहज़ीब हाफ़ी
TEHZEEB-SHAYARI-(43)

बड़ा पुर-फ़रेब है शहद ओ शीर का ज़ायका
मगर इन लबों से तेरा नमक तो नहीं गया
ये जो इतने प्यार से देखता है तू आजकल
मेरे यार कहीं तू मुझसे थक तो नहीं गया

तहज़ीब हाफ़ी

मैंने कब कहा..
वो मेरे हक़ में फ़ैसला करे।
अगर वो मुझसे खुश नहीं है तो,
मुझे जुदा करे।
मैं उसके साथ, जिस तरह गुजारता हूं ज़िंदगी,
उसे चाहिए कि,
मेरा शुक्रिया अदा करे।।

तहज़ीब हाफ़ी

और ही दुनिया में मिली थी तू मुझसे
तू किसी और ही मौसम की महक लाई थी
डर रहा था कि कहीं जख़्म ना भर जाएं मेरे
और तू मुट्ठियाँ भर भर के नमक लाई थी

तहज़ीब हाफ़ी

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

तहज़ीब हाफ़ी

रुक गया है वो या चल रहा है
हमको सब कुछ पता चल रहा है।
उसने शादी भी की है किसी से,
और गाँव में क्या चल रहा है ?

तहज़ीब हाफ़ी

उसी जगह पर जहां कई रास्ते मिलेंगे
पलटके आए तो सबसे पहले तुझे मिलेंगे
अगर कभी तेरे नाम पर जंग हो गई तो
हम जैसे बुज़दिल की पहली सफ़ में खड़े मिलेंगे

तहज़ीब हाफ़ी

किसी दरख़्त की हिद्दत में दिन गुज़ारना है
किसी चराग़ की छाँव में रात करनी है
वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खुलना
वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है

तहज़ीब हाफ़ी

तेरी आंखों ने मुझसे मेरी खुद्दारी छीनी वरना
पांव की ठोकर से कर देता था मैं दुनिया एक तरफ़
मेरी मर्ज़ी थी मैं ज़र्रे चुनता या लहरें चुनता
उसने दरिया एक तरफ़ रक्खा और सहरा एक तरफ़

तहज़ीब हाफ़ी

नहीं आता किसी पर दिल हमारा
वही कश्ती वही साहिल हमारा
तेरे दर पर करेंगे नौकरी हम
तेरी गलियां है मुस्तकबिल हमारा

तहज़ीब हाफ़ी

मैंने अब तक जितने भी लोगों में ख़ुद को बांटा है
बचपन से रखता आया हूं तेरा हिस्सा एक तरफ़
एक तरफ़ मुझे जल्दी है उसके दिल में घर करने की
एक तरफ़ वो कर देता है रफ़्ता-रफ़्ता एक तरफ़

तहज़ीब हाफ़ी

नहीं था अपना मगर अपना-अपना लगा
किसी से मिलके बहोत देर बाद अच्छा लगा
तुम्हें लगा था कि मैं मर जाऊंगा तुम्हारे बग़ैर
बताओ फिर तुम्हें मेरा मज़ाक कैसा लगा

तहज़ीब हाफ़ी

बना चुका हूँ मोहब्बतों के दर्द की दवा
अगर किसी को चाहिए तो मुझसे राब्ता करे

तहज़ीब हाफ़ी

रात को दीप की लौ कम नहीं रखी जाती
धुंध में रौशनी…. मद्धम नहीं रखी जाती
कैसे दरिया की हिफ़ाज़त तेरे ज़िम्मे ठहराऊँ
तुझसे एक आंख अगर नम नहीं रखी जाती

तहज़ीब हाफ़ी

जंग पर निकलता हूँ, ढाल भूल जाता हूँ
मैं अज़ब शिकारी हूँ, जाल भूल जाता हूँ
वस्ल में भी रहती है, भूलने की बीमारी
होठ चूम आता हूँ, गाल भूल जाता हूँ

तहज़ीब हाफ़ी

ये कौन राह में बैठे है मुस्कुराते हैं
मुसाफिरों को गलत रास्ता बताते हैं
तेरे लगाये हुए जख्म क्यूँ नही भरते
मेरे लगाये हुए पेड़ सूख जाते हैं..!!

तहज़ीब हाफ़ी

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं
चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया
उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया

तहज़ीब हाफ़ी

तुमने तो बस दिया जलाना होता है
हमने कितनी दूर से आना होता है
आँसू और दुआ में कोई फ़र्क़ नहीं
रो देना भी हाथ उठाना होता है
मेरे साथ परिंदों कुछ इंसान भी हैं
मैंने अपने घर भी जाना होता है
तुम अब उन रास्तों पर हो तहज़ीब जहां
मुड़ के तकने पर जुर्माना होता है

तहज़ीब हाफ़ी

बैठा रहता था साहिल पे सारा दिन
दरिया मुझ से जान छुड़ाया करता था
थक जाता था बादल साया करते करते
और फिर मैं बादल पे साया करता था

तहज़ीब हाफ़ी

मेरे बस में नहीं वरना कुदरत का लिखा हुआ काटता
तेरे हिस्से में आए बुरे दिन कोई दूसरा काटता
लारियों से ज्यादा बहाव था तेरे हर इक लफ्ज़ में
मैं इशारा नहीं काट सकता तेरी बात क्या काटता

तहज़ीब हाफ़ी

मैं राह से भटक गया तो क्या हुआ
चराग़ मेरे हाथ में तो था नहीं
मैं इन दिनों हूँ ख़ुद से इतना बे-ख़बर
मैं मर चुका हूँ और मुझे पता नहीं

तहज़ीब हाफ़ी

मेरी आँख से तेरा गम छलक तो नही गया
तुझे ढूंढ कर मैं भटक तो नहीं गया ….!!
ये जो इतने प्यार से देखता है आजकल
मेरे दोस्त तू मुझसे थक तो नहीं गया.!!

तहज़ीब हाफ़ी

अब मज़ीद उससे ये रिश्ता नहीं रख़ा जाता
जिससे इक शख़्स का पर्दा नहीं रख़ा जाता
एक तो बस में नहीं तुझसे मोहब्बत न रख़ूं
और फिर हाथ भी हल्का नहीं रख़ा जाता

तहज़ीब हाफ़ी

ज़ख़्मों ने मुझ में दरवाज़े खोले हैं
मैं ने वक़्त से पहले टाँके खोले हैं
बाहर आने की भी सकत नहीं हम में
तू ने किस मौसम में पिंजरे खोले हैं

तहज़ीब हाफ़ी

मैं अब के साल परिंदों का दिन मनाऊँगा
मिरी क़रीब के जंगल से बात हो गई है
बिछड़ के तुझ से न ख़ुश रह सकूँगा सोचा था
तिरी जुदाई ही वज्ह-ए-नशात हो गई है

तहज़ीब हाफ़ी

सो रहेंगे कि जागते रहेंगे
हम तिरे ख़्वाब देखते रहेंगे
लौटना कब है तू ने पर तुझको
आदतन ही पुकारते रहेंगे

तहज़ीब हाफ़ी

मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है, मैं वो वक़्त आने पे कर जाऊँगा
तुम मुझे ज़हर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊँगा

तहज़ीब हाफ़ी

मैं घर में बैठ कर पढ़ता रहा सफर की दुआ
वो भी उनके लिए जो मुझ से दूर जा रहे थे

तहज़ीब हाफ़ी

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा
अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया
अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा

तहज़ीब हाफ़ी

सहरा से आने वाली हवाओं में रेत है
हिजरत करूँगा गाँव से गाँव में रेत है
मुद्दत से मेरी आँख में इक ख़्वाब है मुक़ीम
पानी में पेड़ पेड़ की छाँव में रेत है

तहज़ीब हाफ़ी

नींद ऐसी कि रात कम पड़ जाए
ख़्वाब ऐसा कि मुँह खुला रह जाए
इतनी गिर्हें लगी हैं इस दिल पर
कोई खोले तो खोलता रह जाए

तहज़ीब हाफ़ी

क्या ग़लत-फ़हमी में रह जाने का
सदमा कुछ नहीं??
वो मुझे समझा तो सकता था कि
ऐसा कुछ नहीं..
इश्क़ से बच कर भी
बंदा कुछ नहीं होता मगर,
ये भी सच है इश्क़ में..
बंदे का बचता कुछ नहीं !!

तहज़ीब हाफ़ी

जाने वाले से राब्ता रह जाए
घर की दीवार पर दिया रह जाए
इक नज़र जो भी देख ले तुझ को
वो तिरे ख़्वाब देखता रह जाए

तहज़ीब हाफ़ी

रात बहुत है तुम चाहो तो सो जाओ
मेरा क्या है मैं दिन में भी सो लूँगा
तुम को दिल की बात बतानी है लेकिन
आँखें बंद करो तो मुट्ठी खोलूँगा

तहज़ीब हाफ़ी

मैं ने तुम को अंदर आने का कहा
तुम तो मेरे दिल के अंदर आ गए
एक ही औरत को दुनिया मानकर
इतना घुमा हूँ कि चक्कर आ गए
इम्तिहान-ए-इश्क़ मुश्किल था मगर
नक़्ल कर के अच्छे नंबर आ गए
तेरे कुछ आशिक़ तो गंगाराम हैं
और जो बाक़ी थे बिस्तर आ गए

तहज़ीब हाफ़ी

ख़ुद पे जब दश्त की वहशत को मुसल्लत करूँगा
इस क़दर ख़ाक उड़ाऊँगा क़यामत करूँगा
अब तिरे राज़ सँभाले नहीं जाते मुझ से
मैं किसी रोज़ अमानत में ख़यानत करूँगा

तहज़ीब हाफ़ी

इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ
ख़ुद ही आँगन ख़ुद ही शजर भी हूँ
अपनी मस्ती में बहता दरिया हूँ
मैं किनारा भी हूँ भँवर भी हूँ

तहज़ीब हाफ़ी
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